आयुष प्रभु धनवंतरी, हमें दीजिए स्वास्थ्य ।
आज जन्मदिन आपका, दिवस परम परमार्थ ।।
दिवस परम परमार्थ, पर्व यह धनतेरस का ।
असली धन स्वास्थ्य, दीजिए वर सेहत का ।।
धन से बड़ा "रमेश", स्वास्थ्य पावन पीयुष ।
आयुर्वेद का पर्व, आज बांटे हैं आयुष ।।
नरकचतुर्दशी की शुभकामना-
शक्ति-भक्ति प्रभु हमें दीजिये (सार छंद)-
पाप-पुण्य का लेखा-जोखा, प्रभुवर आप सरेखे ।
सुपथ-कुपथ पर कर्म करे जब, प्राणी प्राणी को देखे ।
शक्ति-भक्ति प्रभु हमें दीजिये, करें कर्म हम जगहित ।
प्राणी-प्राणी मानव-मानव, सबको समझें मनमित ।।
दीपावली की शुभकामना-
ज्ञान लौ दीप्त होकर (रूपमाला छंद)-
दीप की शुभ ज्योति पावन, पाप तम को मेट ।
अंधियारा को हरे है, ज्यों करे आखेट ।
ज्ञान लौ से दीप्त होकर, ही करे आलोक ।
आत्म आत्मा प्राण प्राणी, एक सम भूलोक ।।
दीप पर्व पावन, लगे सुहावन (त्रिभंगी छंद)-
दीप पर्व पावन, लगे सुहावन, तन मन में यह, खुशी भरे ।
दीपक तम हर्ता, आभा कर्ता, दीन दुखी के, ताप हरे ।।
जन-जन को भाये, मन हर्शाये, जगमग-जगमग, दीप करे ।
सुख नूतन लाये, तन-मन भाये, दीप पर्व जब, धरा भरे ।।
बोल रहे हैं दीयें (सार छंद)-
जलचर थलचर नभचर सारे,, शांति सुकुन से जीये ।
प्रेमभाव का आभा दमके, बोल रहे हैं दीये ।।
राग-द्वेश का घूप अंधेरा, अब ना टिकने पाये ।
हँसी-खुशी से लोग सभी अब, सबको गले लगाये ।।
भाईदूज की शुभकामना-
पावन पर्व भाईदूज (राधिका छंद)-
पावन पर्व भाईदूज, दुनिया रिझावे ।
भाई-बहनों का प्यार, जग को सिखावे ।।
दुखिया का दोनों हाथ, बहन का भ्राता ।
यह अति पावन संबंध, जग को सुहाता ।।
सुबह सवेरे जागिए, जब जागे हैं भोर ।
समय अमृतवेला मानिए, जिसके लाभ न थोर ।।
जब पुरवाही बह रही, शीतल मंद सुगंध ।
निश्चित ही अनमोल है, रहिए ना मतिमंद ।।
दिनकर की पहली किरण, रखता तुझे निरोग ।
सूर्य दरश तो कीजिए, तज कर बिस्तर भोग ।।
दीर्घ आयु यह बांटता, काया रखे निरोग ।
जागो जागो मित्रवर, तज कर मन की छोभ ।।
दोहे चिंतन के-
शांत हुई ज्योति घट में, रहा न दीपक नाम ।
अमर तत्व निज पथ चला, अमर तत्व से काम ।।
धर्म कर्म धर्म, कर्म का सार है, कर्म धर्म का सार ।
करें मृत्यु पर्यन्त जग, धर्म-कर्म से प्यार ।।
दुनिया भर के ज्ञान से, मिलें नहीं संस्कार ।
अपने भीतर से जगे, मानवता उपकार ।।
डाली वह जिस पेड़ की, उससे उसकी बैर ।
लहरायेगी कब तलक, कबतक उसकी खैर ।
जाति मिटाने देश में, अजब विरोधाभास ।
जाति जाति के संगठन, करते पृथ्क विलास ।।
सकरी गलियां देखकर, शपथ लीजिये एक ।
बेजाकब्जा छोड़कर, काम करेंगे नेक ।।
शिक्षक निजि स्कूल का, दीन-हीन है आज ।
भूखमरी की राह पर, चले चले चुपचाप ।।