सुबह सवेरे जागिए, जब जागे हैं भोर ।
समय अमृतवेला मानिए, जिसके लाभ न थोर ।।
जब पुरवाही बह रही, शीतल मंद सुगंध ।
निश्चित ही अनमोल है, रहिए ना मतिमंद ।।
दिनकर की पहली किरण, रखता तुझे निरोग ।
सूर्य दरश तो कीजिए, तज कर बिस्तर भोग ।।
दीर्घ आयु यह बांटता, काया रखे निरोग ।
जागो जागो मित्रवर, तज कर मन की छोभ ।।
दोहे चिंतन के-
शांत हुई ज्योति घट में, रहा न दीपक नाम ।
अमर तत्व निज पथ चला, अमर तत्व से काम ।।
धर्म कर्म धर्म, कर्म का सार है, कर्म धर्म का सार ।
करें मृत्यु पर्यन्त जग, धर्म-कर्म से प्यार ।।
दुनिया भर के ज्ञान से, मिलें नहीं संस्कार ।
अपने भीतर से जगे, मानवता उपकार ।।
डाली वह जिस पेड़ की, उससे उसकी बैर ।
लहरायेगी कब तलक, कबतक उसकी खैर ।
जाति मिटाने देश में, अजब विरोधाभास ।
जाति जाति के संगठन, करते पृथ्क विलास ।।
सकरी गलियां देखकर, शपथ लीजिये एक ।
बेजाकब्जा छोड़कर, काम करेंगे नेक ।।
शिक्षक निजि स्कूल का, दीन-हीन है आज ।
भूखमरी की राह पर, चले चले चुपचाप ।।