मानसून की फुहारों से धरती की सतह नाच उठी है । चिड़िया घोसले में फुदकने में लगे हैं । मेंढक और झींगुरा मैं क्यूट कंपटीशन हो रहा है। छोटी-छोटी घास धरती की छाती से लिपटने लगे हैं । पतझड़ के पौधे फिर हरियाने लगे हैं । सुखी नदी तालाब अपनी प्यास बुझा रहे हैं ।
हमारे बच्चे चिड़ियों की तरह चहकने लगे हैं । गांव की गलियों में बच्चों का गुंजन हो रहा है। किसानों का मन मयूर की तरह नाच उठें हैं । खेतों में बीज छिटकते हुए किसानों के गीत सुनने लायक है । अभी खेतों में बुवाई का काम जोरों पर है जिधर देखो किसान के हल, ट्रैक्टर बुवाई में लगे हुए हैं ।
मानसून का महत्व-
भारतीय कृषि मानसून पर आधारित है । चाहे हजारों लाखों सिंचाई के साधन हो जाएं किंतु मानसून में वर्षा ना हो तो कृषि में सम्मत नहीं हो सकता । इस प्रकार मानसून भारतीय कृषि का बैकबोन है ।
अच्छी कृषि हो इसके लिए आवश्यक है अच्छे मानसूनी बारिश हो । मानसून की सक्रियता एटमॉस्फेयर प्रेशर पर डिपेंड करता है । इसके लिए पेड़ पौधे सहायक होते हैं । जितने ज्यादा पेड़ पौधे होंगे उतनी ही अच्छी बारिश होगी ।
अच्छी मानसून के लिए वृक्षारोपण और वृक्षों का संरक्षण आवश्यक-
मानसून का महत्व स्वयं सिद्ध है । मानसून जहां कृषि की रीढ़ है, वहीं भू-गर्भ जल स्तर को बनाए रखने के आवश्यक है । जहां हमारे लिए “जल ही जीवन है” वहीं जल के लिए मानसून जीवन है । मानसूनी वर्षा भू-सतही जल और भू-गर्भी जल दोनों के लिए ईंधन के समान है ।
मानसून के लिए हरे-भरे पेड़-पौधों का होना आवश्यक है । इसलिए केवल दिखावा के वृक्षारोपण करने से काम नहीं चलने वाला है अपितु वृक्षों का संरक्षण भी आवश्यक है । केवल जंगलों का घना होना ही आवश्यक नहीं है अपितु बसाहटों के आसपास भी अच्छी संख्या में पेड़-पौधों का होना भी आवश्यक है ।
उपसंहार-
मानसून का यह दृश्य हर व्यक्ति को आह्लादित कर रहा है । कभी रिमझिम-रिमझिम फुहारों से घर का आंगन आनंदित हो रहा है तो कभी तेज बारिश से छप्पर से पानी अंदर आ रहे हैं । क्या मनोरम दृश्य है । चारो ओर संतोष का भाव देखकर मन में संतोष हो रहा है । आखिर वर्षा से अन्न की प्राप्ति है, वर्षा से ही जल, और वर्षा से ही जीवन सुलभ है । इस बार अच्छी बारिश हो यही शुभकामना है ।
आज सारा विश्व पर्यावरणीय समस्या से जूझ रहा है, ‘ग्लोबल वार्मिंग‘ शब्द ट्रेन कर रहा है । वायु प्रदूषण इतना गंभीर हो रहा है कि सांस लेना भी दुभर हो रहा है । जल संकट इस प्रकार हावी है कि शुद्ध पीने के पानी के लिए लोग तरस रहे हैं । इन सब का कारण क्या है ? बड़े-बड़े शोधार्थी, बड़े-बड़े वैज्ञानिक इस दिशा में अनेक कार्य कर रहे हैं और इससे उबरने का प्रयास भी कर रहे हैं ।
वास्तव में इन समस्याओं कि पीछे मूल कारण क्या है ? अधिकांश बौद्धिक लोग -जनसंख्या दबाव और प्रकृति का आवश्यकता से अधिक दोहन को इसका कारण मानते हैं । कुछ बुद्धिजीवी, विज्ञान द्वारा नित्य निर्मित नए-नए गैजेट्स को भी इसके लिए उत्तरदाई मानते हैं । भारतीय परिप्रेक्ष्य में इसका चिंतन किया जाए तो जो सबसे बडा कारण उभर कर आता है वह है-‘भूमि अतिक्रमण’ ।
भूमि अतिक्रमण क्या है ?
दूसरों के स्वामित्व के भूमि को अपनेे स्वामित्व मैं लेना भूमि अतिक्रमण कहलाता है । विशेषकर शासकीय भूमि को किसी निजी व्यक्ति द्वारा अथवा किसी निजी संस्था द्वारा अपने अधीन कर लेना ही भूमि अतिक्रमण है ।
भूमि अतिक्रमण का व्यापीकरण-
हमारे देश में भूूमि अतिक्रम इतना व्यापक हो गया हैै कि गांव-गांव, शहर-शहर जहां देखो वहां भूमि अतिक्रमण का प्रभाव दिखाई देने लगा है । धनी-निर्धन, शिक्षित-अशिक्षित, बलशाली-बलहीन, नेता-जनताा, ऐसा कोई वर्ग नहीं है जो इससे अछूता हो । सभी के सभी को दोष देना तो न्याय संगत नहीं होगा । किंतु यह कटु सत्य है की अधिकांश लोगों ने किसी ना किसी रूप में भूमि अतिक्रमण कर रखा है ।
शहर तो शहर गाँव-गाँव से गोचर भूमि, शमशान भूमि, घास भूमि या तो समाप्त हो गये हैं अथवा समाप्त होने के कगार पर है । यहाँ तक की गाँव में जो प्राकृतिक नदी-नाले थे, वे भी या तो विलुप्त हो गये हैं अथवा विलुप्ती के कगार पर हैं । पूर्वजों द्वारा गाँव में बनवाये गये तालाबों, कुँओं, बावलियों का नामो निशाान समाप्त होते जा रहे हैं । जहाँ सरकारी रिकार्ड में शासकीय भूमि दर्ज है, उसका भौतिक मूल्यांकन कराने पर अधिकांशतः भूमि अतिक्रमण का अतिरेक ही दिखाई देता है ।
जहाँ एक ओर सरकारें चैड़ी-चैड़ी सड़कें बनवा रही है, वहीं दूसरी ओर गाँव-शहर-मोहल्लें की गलियां सिकुड़ती जा रही हैं । प्रायः लोग अपने घर के सामने कुछ न कुछ भुमि अतिक्रमण करना ही चाहते हैं । यही लालच का दैत्य गाँव-शहर के पुराने रहवासी क्षेत्रों को उपेक्षित बनाते जा रहे हैं । जिससे सड़क किनारे नई बस्तियों का निर्माण हो जाता है और कुछ ही दिनों में फिर भूमि अतिक्रमण का पाप उस बस्ति को भी निगल जाता है और यही क्रम निरंतर जारी है । लोग सड़क किनारे, रेलवे ट्रेक के किनारे सरकारी भूमि पर अपनी झोपड़ी दिखाकर महल खड़ा कर लेते हैं ।
भूमि अतिक्रमण का कारण-
भूमि अतिक्रमण का सबसे बड़ा कारण जनसंख्या विस्फोट को माना जा सकता है किन्तु जनसंख्या विस्फोट से अधिक संयुक्त परिवार का विघटन और एकाकी सुख-सुविधाओं की लालसा ही इसका बड़ा कारण है । जहाँ संयुक्त परिवार में एक मकान में कुछ कमरों में गुजारा हो सकता वहीं एकाकी परिवार का चलन कई मकानों का मांग करता है ।
लोगों का वस्तुनिष्ठ से व्यक्तिनिष्ठ होना अर्थात समुदायिक अधिकार के स्थान पर निजि अधिकार पाने की लालसा भूमि अतिक्रमण सबसे बड़ा कारण है ।
देश में कुछ ऐसे विचारधारा पोषित है, जो प्राकृतिक जल, जंगल, और सरकारी जमीन पर सामुदायिक उपभोग के स्थान पर अपना एकाधिकार जातने का प्रयास कर रहे हैं ।
सरकारें राजनीतिक दलों के ही होते हैं और ये राजनीतिक दल वोट की राजनीति में या तो भूमिअतिक्रमण को पोषित कर रहीं होती है अथवा मूकदर्शक रह जाती हैं ।
लोगों में आत्मसम्मान एवं स्वालंबी का आदर्श का भौतिकवाद के लालच में मंद पड़ना भी इसका प्रमुख कारण है ।
भूमि अतिक्रमण का दुश्प्रभाव-
नदी, नाले, कुँआ, बावली, तलाबें जैसे जल स्रोतों की संख्या दिन प्रति दिन घट रहे हैं, जिससे भू-जल पर हमारी निर्भरता बढ़ गई है, जिससे भू-जल स्तर घटेगा नही ंतो क्या होगा ? जहाँ पहले एक कुएँ से पूरा गाँव पानी पीता था, आज हर घर के लिये अलग से बोर-वेल्स चाहिये तो भू-जल स्तर घटेगा नही ंतो क्या होगा ? जल स्रोतों में तेजी हो रही कमी ही जल संकट का सबसे बड़ा कारण है ।
गाँव के गोचर में, शमशान में, सड़क किनारे, रेल्वे ट्रेक के किनारे हजारों पेड़-पौधे होते थे, जो हमारे पर्यावरण को संतुलित बनाये रखते थे, इन स्थानों में अतिक्रमण होने से पेड़-पौधे कट रहे हैं जो पर्यावरण के लिये संकट पैदा कर रहा है ।
विस्तारीवादी लोग प्राकृतिक जंगल, नदियों, पहाड़ों आदि पर भी अतिक्रमण कर रहें हैं जिससे प्राकृतिक संतुलन बुरी तरह से प्रभावित हो रहा है ।
भूमि अतिक्रमण पर प्रभावी रोक नहीं होने के कारण लोग अपने सामाजिक दायित्व से विमुख होकर स्वार्थी होते जा रहे हैं । लोगों में नैतिक पतन का यह एक बड़ा कारण बन रहा है ।
भूमि अतिक्रमण की प्रवृत्ति पर्यावरणीय समस्या के साथ-साथ सामाजिक समस्या भी पैदा कर रहा है । ‘जिसकी लाठी, उसकी भैस’ को चरित्रार्थ कर रहा है ।
भूमि अतिक्रमण को कैसे रोका जाये-
देश में भूमि अतिक्रमण के विरूद्ध कानून तो है आवश्यकता है कानून के पालन का, कानून का कड़ाई से पालन करा कर इस विभिषिका से बचा जा सकता है ।
लोगों को अधिकारों से अधिक कर्तव्यों का बोध कराना चाहिये, नैतिक शिक्षा देकर उनके सामाजिक दायित्वों का बोध कराना चाहिये । लोगों को स्वभिमानी बनने के लिये प्रेरित करना चाहिये ।
वास्तव में जिन जरूरतमंदों को भूमि की आवश्यकता है, उन्हें आवश्यकता के अनुरूप भूमि आबंटन किया जाना चाहिये । लोग अपने आवश्यकता से अधिक सरकारी जमीनों पर कब्जा कर रखे हैं । अतिक्रमित भूमि के केवल 10-20 प्रतिशत भाग पर जरूरतमंदों का कब्जा है शेष स्थानों पर विस्तारवादियों, लालचियों, दबंगों का कब्जा है ।
यदि देश के वास्तविक जरूरतमंदो को उनके आवश्यकता के अनुरूप भूमि आबंटित कर दिया जाये और गैरजरूरतमंदों से भूमि खाली करा ली जाये तो भी एक बहुत बड़ा भू-भाग अतिक्रमण मुक्त हो जायेगा ।
‘आवश्यकता अविष्कार की जननी है ।’ यदि इस बात की आवश्यकता लोग महसूस करने लगेगें कि भूमि अतिक्रमण बंद कराने की आवश्यकता है तो स्वमेव रास्ता निकल आयेगा क्योंकि ‘जहाँ चाह, वहाँ राह’ । किन्तु जब तक लालच की पट्टी हमारी आँखों में बंधी रहेगी तब तक, तब तक सत्य का दर्शन नहीं होगा ।