अमृत वचन

1.नम्रता और स्नेहार्द्र वक्तृता केवल यही मनुष्य के आभूषण हैं और कोई नहीं ।
2. अधर्म द्वारा एकत्र की हुई सम्पत्ती की अपेक्षा तो सदाचारी पुरूष की दरिद्रता कहीं अच्छी है ।
3. जिन कर्मो में असफलता अवश्यसंभावी है, उसे संभव कर दिखाना और विध्न-बाधाओं से न डर कर अपने कर्तव्य पर डटे रहना प्रतिभा शक्ति के लिये दो प्रमुख सिद्धांत हैं ।
4. लोगों को रूलाकर जो सम्मपत्ती इकट्ठी की जाती है, वह क्रन्दन ध्वनि के साथ ही विदा हो जाती है, मगर जो धर्म द्वारा संचित की जाती है, वह बीच में ही क्षीण हो जाने पर भी अंत में खूब फलती-फूलती है ।
5. यदि तुम्हारे विचार शुद्ध और पवित्र है और तुम्हारी वाणी में सहृदयता है, तो तुम्हारी पाप वृत्ति का स्वयमेव क्षय हो जायेंगे ।
6. सत्पुरूषों की वाणी ही वास्तव में सुस्निग्ध होती है । क्योंकि दयार्द्र कोमल और बनावट से रहित होती है ।
7. लक्ष्मी ईर्ष्या करने वालों के पास नहीं रह सकती । वह उसको अपनी बड़ी बहन दरिद्रता के हवाले कर देती है ।
8. मीठे शब्दों के रहते हुए भी जो मनुष्य कड़वे शब्द का प्रयोग करता है, वह मानों पक्के फल को छोडकर कच्चा फल खाना चाहता है ।