चोका
चोका – जपानी कविता करने की हाइकु जाति की काव्य शिल्प विधा है । हिन्दी साहित्य में हाइकु का प्रचलन अब बढ़ रहा है । हाइकु सबसे छोटी कविता कहने का शिल्प है । हाइकु जैसे ही चोका भी होता है अंतर केवल यह है कि हाइकु 5,7,5 क्रम की तीन ही पंक्ति होती है जबकि चोका 5, 7 क्रम में अनंत पंक्तियों में हो सकती है । अंतिम दो पंक्ति में 7, 7 का दुहराव होता है ।
भारतीय दृष्टिकोण से यह एक वार्णिक छंद है । जिसमें 5 वर्ण, 7 वर्ण, फिर 5 वर्ण के बाद 7 वर्ण इसी क्रम में कई पंक्तियां हो सकती है । इसका अंत 7 वर्ण से होता है । अर्थात अंत की दो पंक्तियों में सात-सात वर्ण होते हैं । इस कला पक्ष के साथ भाव के प्रवाह में रची गई कविता चोका कहलाती है ।
जीवन, ढलती शाम दिन का अवसान

ढलती शाम दिन का अवसान देती विराम भागम भाग भरी दिनचर्या को आमंत्रण दे रही चिरशांति को निःशब्द अव्यक्त बाहें फैलाय आंचल में ढक्कने निंद में लोग होकर मदहोश देखे सपने दिन की घटनाएं चलचित्र सा पल पल बदले रोते हॅसते कुछ भले व बुरे कुछ तो होते वांछित अवांछित आधे अधूरे नयनों के सपने हुई सुबह फिर भागम भाग अंधड़ दौड़ जीवन का अस्तित्व आखिर क्या है मृत्यु की शैय्या पर सोच रहा मानव गुजर गया जीवन एक दिन आ गई शाम करना है आराम शरीर छोड़ कर ।
-रमेश चौहान