अपनी कलम की नोक से, क्षितिज फलक पर, मैंने एक बिंदु उकेरा है ।
भरने है कई रंग, अभी इस फलक पर, कुंचे को तो अभी हाथ धरा है ।
डगमगाती पांव से, अंधेरी डगर पर, चलने का दंभ भरा है ।
निशा की तम से, चलना है उस पथ पर, जिस पथ पर नया सबेरा है ।
राही कोई और हो या न सही, अपनी आशा और विश्वास पर, अपनो का आशीष सीर माथे धरा है ।
-रमेश चौहान