A Hindi content writer.A article writer, script writer, lyrics or song writer and Hindi poet. Specially write Indian Chhand, Navgeet, rhyming and nonrhyming poem, in poetry. Articles on various topics. Especially on Ayurveda, Astrology, and Indian Culture. Educated based on Guru-Shishya tradition on Ayurveda, astrology and Indian culture. I am also write in Chhatisgarhi.
जय जय जय गणराज प्रभु, जय गजबदन गणेश ।
विघ्न-हरण मंगल करण, हरें हमारे क्लेश।।
गिरिजा नंदन प्रिय परम, महादेव के लाल ।
सोहे गजमुख आपके, तिलक किये हैं भाल ।।
तीन भुवन अरू लोक के, एक आप अखिलेश ।
जय जय जय गणराज प्रभु….
मातु-पिता के आपने, परिक्रमा कर तीन ।
दिखा दियेे सब देेव को, कितने आप प्रवीन ।
मातुु धरा अरू नभ पिता, सबको दे संदेश ।।
जय जय जय गणराज प्रभु…
प्रथम पूज्य आप प्रभुु, वंदन बारम्बार ।
करें काज निर्विघ्न अब, पूूजन कर स्वीकार ।।
श्रद्धा अरू विश्वास का, लाये भेट ‘रमेश‘ ।
जय जय जय गणराज प्रभु….
सबले पहिले होय ना, गणपति पूजा तोर ।
परथ हवं मैं पांव गा, विनती सुन ले मोर ।।
जय गणपति गणराज जय, जय गौरी के लाल ।
बाधा मेटनहार तैं, हे प्रभु दीनदयाल ।।
चौपाई
हे गौरा-गौरी के लाला । हे प्रभू तैं दीन दयाला
सबले पहिली तोला सुमरँव । तोरे गुण ला गा के झुमरँव
तही बुद्धि के देवइया प्रभु । तही विघन के मेटइया प्रभु
तोरे महिमा दुनिया गावय । तोरे जस ला वेद सुनावय
देह रूप गुणगान बखानय । तोर पॉंव मा मुड़ी नवावय
चार हाथ तो तोर सुहावय । हाथी जइसे मुड़ हा भावय
मुड़े सूंड़ मा लड्डू खाथस । लइका मन ला खूबे भाथस
सूपा जइसे कान हलावस । सबला तैं हा अपन बनावस
चाकर माथा चंदन सोहय । एक दांत हा मन ला मोहय
मुड़ी मुकुट के साज सजे हे । हीरा-मोती घात मजे हे
भारी-भरकम पेट जनाथे । हाथ जोड़ सब देव मनाथे
तोर जनम के कथा अचंभा ।अपन देह ले गढ़ जगदम्बा
सुघर रूप अउ देके चोला । अपन शक्ति सब देवय तोला
कहय दुवारी पहरा देबे । कोनो आवय डंडा देबे
गौरी तोरे हे महतारी । करत रहे जेखर रखवारी
देवन आवय तोला जांचे । तोरे ले एको ना बाचे
तोर संग सब हारत जावय । आखिर मा शिव शंकर आवय
होवन लागे घोर लड़ाई । करय सबो झन तोर बड़ाई
लइका मोरे ये ना जानय । तोरे बर त्रिसूल ल तानय
तोर मुड़ी जब काटय शंकर । मॉं के जोगे क्रोध भयंकर
देख क्रोध सब धरधर कांपे । शिव शंकर के नामे जापे
उलट-पुलट सब सृष्टि करीहँव । कहय कालिका मुंड पहिरहँव
गौरी गुस्सा शंकर जानय । तोला अपने लइका मानय
हाथी मुड़ी जोड़ जीयावय । मात-पिता दूनो अपनावय
नाम गजानन तोर धरावँय । पहिली पूजा देव बनावँय
मात-पिता ला सृष्टि बताये । प्रदिक्षण तैं सात लगाये
सरग ददा अउ धरती दाई ।तुहँर गोठ सबके मनभाई
तोर नाम ले मुहरुत करथन । जीत खुशी ला ओली भरथन
बने-बने सब कारज होथे । जम्मो बाधा मुड़धर रोथे
जइसन लम्बा सूंड़ ह तोरे । लम्बा कर दव सोच ल मोर
जइसन भारी पेट ह तोरे । गहरा कर दव बुद्धि ल मोरे
गौरी दुलार भाथे तोला । ओइसने दव दुलार मोला
गुरतुर लड्डू भाये तोला । गुरतुर भाखा दे दव मोला
हे लंबोदर किरपा करदव । मोरे कुबुद्धि झट्टे हरदव
मनखे ला मनखे मैं मानँव । जगत जीव ला एके जानँव
नाश करव प्रभु मोर कुमति के । भाल भरव प्रभु बुद्धि सुमति ले
अपने पुरखा अउ माटी के । नदिया-नरवा अउ घाटी के
धुर्रा-चिखला मुड़ मा चुपरँव। देश-राज के मान म झुमरँव
नारद-शारद जस बगरावय । मूरख 'रमेश' का कहि गावय
हे रिद्धी सिद्धी के दाता । अब दुख मेटव भाग्य विधाता
दोहा
शरण परत गणराज के, मिटय सकल दुख क्लेश ।
सुख देवय पीरा हरय, गणपति मोर गणेश ।।
जय जय गणराज प्रभु, रखव आस विश्वास ।
विनती करय 'रमेश' हा, कर लौ अपने दास ।।