
1.
कोयल कौआ एक सा, नहीं रंग में भेद ।
राजनीति का रंग भी, कालिख श्याम अभेद ।।
कालिख श्याम अभेद, स्वार्थ है अपना अपना ।
कोई नहीं तटस्थ, सभी कोई है ढपना ।।
फेकू पप्पू रंग, भक्त चम्मच ठकठौआ ।
करे कौन पहचान, श्याम है कोयल कौआ ।।
2.
नेता स्वार्थ साधने, बदल रहे संविधान ।
करने दो जो चाहते, डालो मत व्यवधान ।।
डालो मत व्यवधान, है अभी उनकी बारी ।
लक्ष्य पर रखो ध्यान, करो अपनी तैयारी ।।
बगुला जोहे बाट, बैठे नदी तट रेता ।
शिकारी बन बैठो, शिकार हो भ्रष्ट नेता ।
3.
मतदाता को मान कर, पत्थर सा भगवान ।
नेता नेता भक्त बन, चढ़ा रहे पकवान ।।
चढ़ा रहे पकवान, एक दूजे से बढ़कर ।
रखे मनौती लाख, घोषणा चिठ्ठी गढ़कर ।।
बिना काम का दाम, मुफ्तखोरी कहलाता ।
सुन लो कहे ‘रमेश‘, काम मांगे मतदाता ।।
4.
देना है तो दीजिये, हर हाथों को काम ।
नही चाहिये भीख में, कौड़ी का भी दाम ।।
कौड़ी का भी दाम, नहीं मिल पाते हमको ।
अजगर बनकर तंत्र, निगल जाते हैं सबको ।।
सुन लो कहे ‘रमेश‘, दिये क्यों हमें चबेना ।
हमें चाहिये काम, दीजिये जो हो देना ।।
5.
बैरी बाहर है नहीं, घर अंदर है चोर ।
मानवता के नाम पर, राष्ट्र द्रोह ना थोर ।।
राष्ट्र द्रोह ना थोर, शत्रु को पनाह देना ।
गढ़कर पत्थरबाज, साथ उनके हो लेना ।।
राजनीति का स्वार्थ, कहां है अब अनगैरी ।
माटी का अपमान, मौन हो देखे बैरी ।।
6.
साचा साचा बात है, नहीं साच को आच ।
राजनीति के आच से, लोग रहे हैं नाच ।।
लोग रहे हैं नाच, थाम कर कोई झंडा ।
करते उनकी बात, जुबा पर लेकर डंडा ।।
साचा कहे रमेश, नहीं कोई अपवाचा ।
यही सही उपचार, राजनेता हो साचा ।।
(शब्दार्थ -ढपना-ढक्कन, ठकठौआ- करताल बजाकर भीख मांगने वाला)
-रमेेेेश चौहान