मेरे अंतस में (अतुकांत कविता)

आज अचानक मैंने अपने अंत: पटल में झांक बैठा देखकर चौक गया काले-काले वह भी भयावह डरावने दुर्गुण फूफकार रहे थे मैं खुद को एक सामाजिक प्राणी समझता था किंतु यहां मैंने पाया समाज से मुझे कोई सरोकार ही नहीं मैं परिवार का चाटुकार केवल बीवी बच्चे में भुले बैठा मां बाप को भी साथ नहीं दे पा रहा बीवी बच्चों से प्यार नहीं नहीं यह तो केवल स्वार्थ दिख रहा है मेरे अंतस में -रमेश चौहान