खफा मुहब्बते खुर्शीद औ मनाने से,
फरेब लोभ के अस्काम घर बसाने से ।
इक आदमियत खफा हो चला जमाने से,
इक आफताब के बेवक्त डूब जाने से ।
नदीम खास मेरा अब नही रहा साथी,
फुवाद टूट गया उसको अजमाने से ।
जलील आज बहुत हो रहा यराना सा..ब
वो छटपटाते निकलने गरीब खाने से ।
असास हिल रहे परिवार के यहां अब तो
वफा अदब व मुहब्बत के छूट जाने से
मेरे माता पिता ही तीर्थ हैं हर धाम से पहले
मेरे माता पिता ही तीर्थ हैं हर धाम से पहले
चला थामे मैं उँगली उनकी नित हर काम से पहले
उठा कर भाल मै चिरता चला हर घूप जीवन का,
बना जो करते सूरज सा पिता हर शाम से पहले
झुकाया सिर कहां मैने कही भी धूप से थक कर,
घनेरी छांव बन जाते पिता हर घाम से पहले
सुना है पर कहीं देखा नही भगवान इस जग में
पिता सा जो चले हर काम के अंजाम से पहले
पिताजी कहते मुझसे पुत्र तुम अच्छे से करना काम
तुम्हारा नाम भी आएगा मेरे नाम से पहले
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