काया कपड़े विहीन नंगे होते हैं ।
झगड़ा कारण रहीत दंगे होते हैं।।
जिनके हो सोच विचार ओछे दैत्यों सा
ऐसे इंसा ही तो लफंगे होते हैं ।।
2. प्यार में मजबूर
तुम समझते हो तुम मुझ से दूर हो । जाकर वहां अपने में ही चूर हो ।। तुम ये लिखे हो कैसी पाती मुझे, समझा रहे क्यों तुम अब मजबूर हो ।।
3. औकात
कोई सुने ना सुने राग अपना सुनाना है । रह कर अकेले भी अपना ये महफिल सजाना है । परवाह क्यों कर किसी का करें इस जमाने में औकात अपनी भी तो इस जहां को दिखाना है ।।
4. किसान
खून पसीना सा जो बहाते, वीर ऐसा नही देखा । पेट भरे जो तो दूसरो का, धीर ऐसा नही देखा । अन्न उगाते जो चीर कर धरती, कृषक कहाते हैं । विष भी पचाते है जो धरा में, हीर ऐसा नही देखा । (हीर-शंकर जी)
5. प्यार करना पड़ता है
अनदेखे अनसुने से हो जाये प्यार ऐसा नही देखा । आये ना सामने उससे हो तकरार ऐसा नही देखा ।। तुझको करना पड़े है पहले से प्यार हो तो नही जाता । खुद-बा-खुद जल उठे तीली बेगार ऐसा नही देखा ।।
6. साजिश
साजिशों के दौर में किसे कहें हम सच्चा आदमी ही आदमी को दे रहे हैं गच्चा स्वार्थ अपनों से ही है दूसरों का क्या देख लो घर में लोभ में बाजार जाता बच्चा
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