गजल से परिचय-
चाहे आप हिन्दी साहित्य की बात करें, चाहे उर्दू साहित्य की बात करें या फिल्मी गानों की या फिर कवि सम्मेलनों की ये सारे के सारे क्षेत्र गजल के बिना अधूरे ही लगते हैं । हालाकि गज़ल उर्दू साहित्य से प्रवाहित हुई धारा है किन्तु गंगा-जुमनी तहजिब के इस देश में हिन्दी साहित्य में आ मिली है । गंगा-यमुना के पावन संगम तट की भांति उर्दू साहित्य एवं हिन्दी साहित्य का संगम तट यह गज़ल ही है, जो केवल दो साहित्यों को ही परस्पर नहीं जोड़ती अपितु दो संस्कृति को आपस में जोड़ती हैं और अनेकता में एकता के नारे को बुलंद करती हैं । शब्द चाहे उर्दू के हों या हिन्दी के किन्तु हिन्दी देवनागरी लिपि में गजलों का प्रचलन हिन्दी साहित्य विकास के समान्तर चला आ रहा है । इस महत्वपूर्ण साहित्यिक विधा गजल के बारिकियों को जानने का प्रयास करतें हैा, गजल के छंद शिल्प, गज़ल रचना विधि को जानने का प्रयास करते हैं ।
गज़ल के कुछ परिभाषिक शब्द-
ग़ज़ल-
ग़ज़ल शेरों का एक ऐसा समूह है जिसके प्रत्येक शेर समान रदीफ (समांत), समान का़फिया (तुकांत) और समान वज्न (मात्राक्रम) मतलब बहर (स्केल) में होते हैं । गैरमुरद्दफ ग़ज़ल में रदीफ नहीं होता किन्तु बहर होना अनिवार्य है ।
शाईरी-
गजल लिखने के लिये अपने विचारों को गजल के पैमाने में पिरानो अर्थात ग़ज़ल लिखने की प्रक्रिया को शाईरी कहते हैं ।
शाइर या शायर-
गजल लिखने वाले को शइर या शायर कहते हैं ।
शेअर या शेर-
समान रदीफ (समांत), समान का़फिया (तुकांत) और समान वज्न (मात्राक्रम) मतलब बहर (स्केल) में लिखे दो पंक्ति को शेअर कहते हैं ।
उदाहरण-
हो गई है पीर पर्वत सी पिघलनी चाहिए इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही हो कहीं भी आग लेकिन आग जलनी चाहिए
मिसरा-
शेअर जो दो पंक्त्यिों का होता है, उसके प्रत्येक पंक्ति को मिसरा कहते हैं ।
मिसरा-ए-उला-
शेअर की पहली पंक्ति को मिसरा-ए-उला कहते हैं ।
मिसरा-ए-सानी-
शेअर की दूसरी पंक्ति को मिसरा-ए-सानी कहते हैं ।
जैसे-
हो गई है पीर पर्वत सी पिघलनी चाहिए (पहली पंक्ति-मिसरा-उला) इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए (दूसरी पंक्ति-मिसरा-ए-सानी) मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही (पहली पंक्ति-मिसरा-ए-उला) हो कहीं भी आग लेकिन आग जलनी चाहिए (दूसरी पंक्ति-मिसरा-ए-सानी)
मतला-
ग़ज़ल के पहले शेर जिसके दोनों मिसरे में रदीफ और काफिया हो उसे मतला कहते हैं ।
जैसे-
हो गई है पीर पर्वत सी पिघलनी चाहिए (रदीफ-चाहिये, काफिया- अलनी) इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए (रदीफ-चाहिये, काफिया- अलनी)
मक्ता-
गजल के आखरी शेर को मक्ता कहते हैं, इस शेर में प्राय: शायर का नाम आता है ।
जैसे-
मैंने माना कि कुछ नहीं 'ग़ालिब'
मुफ़्त हाथ आये तो बुरा क्या है
गजल के प्रकार- गजल दो प्रकार के होते है-
- मुरद्दफ ग़ज़ल-जिसके शे़रों में रदीफ होता है ।
- गैर मुरद्दफ ग़ज़ल-जिसके शे़रों में रदीफ नहीं होता ।
रदीफ-
रदीफ एक समांत शब्द होता है जो मतला (गजल के पहले शेर की दोनों पंक्ति) और सभी शेर के मिसरा-ए-सानी मतलब शेर की दूसरी पंक्ति में आता है ।
रदीफ का उदाहरण-
इस गजल मतला पर दूसरे शेर के मिसरा-ए-सानी पर चाहिये समांत शब्द है –
हो गई है पीर पर्वत सी पिघलनी चाहिए इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही हो कहीं भी आग लेकिन आग जलनी चाहिए
काफिया-
रदीफ के ठीक पहले आने वाले समतुकांत शब्द को काफिया कहते हैं ।
काफिया का उदाहरण-
इसी उदाहरण में चाहिये रदीफ के पहले ‘अलनी’ समतुकांत शब्द आया है-
हो गई है पीर पर्वत सी पिघलनी चाहिए इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही हो कहीं भी आग लेकिन आग जलनी चाहिए
वज़्न-
किसी शब्द के मात्रा भार या मात्रा क्रम को वज़्न कहते हैं ।
वज़्न का नाम और उदाहरण-
वज़्न का नाम | मात्रा भार | उदाहरण शब्द |
फअल | 12 | असर, समर, नज़र ऩबी, यहॉं आदि |
फैलुन | 22 | राजन, राजा, बाजा, इसको आदि |
फाअ | 21 | राम, राज, आदि |
वज़्न तय करना-
शब्दों को बालेने में जो समय लगता है उस आधार पर शब्दों का वज़्न तय किया जाता है । इसके लिये प्रत्येक अक्षर का दो भार दिया गया है एक लाम दूसरा गाफ ।
लाम-
जिन अक्षरों के उच्चारण में कम समय लगता है लाम कहते हैं । यह हिन्दी के लघु मात्रा ही है और इसी समान इसका वर्ण भार 1 होता है ।
हिन्दी वर्ण माला के अ, इ, उ स्वर और इनसे बने व्यंजन एक मात्रिक मतलब लाम होते हैं ।
जैसे- अ -1, इ-1, उ-1, क-1, कि-1, कु-1 इसी प्रकार आगे...... चँन्द्र बिन्दु युक्त व्यंजन भी लाम होते हैं जैसे कँ-1, खँ-1 आदि
गाफ-
जिन वर्णे के उच्चारण में लाम से ज्यादा समय लगता उसे गाफ कहते हैं या हिन्दी का दीर्घ मात्रिक ही है जिसका भार 2 होता है ।
हिन्दी वर्णमाला के आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ, अं स्वर और स्वरों से बनने वाले व्यंजन गाफ होते है ।
जैसे- आ-2, ई-2, ऊ-2, ए-2 आदि
का-2, की-2 कू-2 के-2 आदि
इसके अतिरिक्त जिन दो लाम या लघु वर्णो का उच्चारण एक साथ होता है उसे शाश्वत गुरू या गाफ कहते हैं । यही उर्दू साहित्य में हिन्दी साहित्य के मात्रा गणना के भिन्न नियम है ।
जैसे- घर, जल, शब्द हिन्दी 1,1 है जबकि उर्दू साहित्य में यह 2 है क्योंकि इसका उच्चारण एक साथ हो रहा है ।
'अजर' शब्द हिन्दी में 111 है जबकी उर्दू साहित्य में अजर- अ-1 और जर-2 है ।
रूकन-
जिस प्रकार हिन्दी छंद शास्त्र में ‘यमाताराजभानसलगा’ गण लघु गुरू का क्रम होता है उसी प्रकार उर्दू साहित्य में लाम और गाफ के समूह रूकन और बहुवचन इसे अरकान कहते हैं ।
रूकन के भेद-
- सालिम रूकन
- मुजाहिफ रूकन
सालिम रूकन –
उर्दू साहित्य में मूल रूकन को सालिम रूकन कहते हैं इनकी संख्या 7 होती है । ये इस प्रकार है-
क्रमांक | रूकन काप्रकार | रूकन का नाम | मात्रा भार | उदाहरण शब्द/वाक्यांश |
1. | फईलुन | मुतकारिब | 122 | हमारा |
2. | फाइलुन | मुतदारिक | 212 | रामजी |
3. | मुफाईलुन | हज़ज | 1222 | चलो यारा |
4. | फाइलातुन | रम़ल | 2122 | रामसीता |
5. | मुस्तफ्यलुन | रज़ज | 2212 | आओ सभी |
6. | मुतफाइलुन | कामिल | 11212 | घर में नहीं |
7. | मुफाइलतुन | वाफिर | 12112 | कबीर कहे |
मुजाहिफ रूकन-
सालिम रूकन या मूल रूकन की मात्रा को कम करने से रूकन बनता है ।
जैसे- सालिम रूकन-मुफाईलुन- 1222 के तीसरी मात्रा 2 को घटा कर 1 करने पर मुफाइलुन 1212 बनता है । इसी प्रकार- मुस्तफ्यलुन- 2212 रूकन से मफाइलुन 1212, फाइलुन 212, मफऊलुन 222 बनाया जाता है ।
अरकान-
रूकन के समूह को अरकान कहते हैं, इससे ही बहर का निर्माण होता है ।
जैसे- फाइलातुन मूल रूकन की पुनरावृत्ति करने पर फाइलातुन/फाइलातुन/फाइलातुन/फाइलातुन/
बहर-
जिस लय पर गज़ल कही जाती है या जिस अरकान पर गज़ल लिखी जाती है उसे बहर कहते हैं ।
जैसे- बहर-ए-रमल में रमल मजलब फाइलातुन की चार बार आवृती होती है- फाइलातुन/फाइलातुन/फाइलातुन/फाइलातुन/
तक्तीअ करना-
शेर में बहर को परखने के लिये जो मात्रा गणाना किया जाता है उसे तक्तीअ करना कहते हैं । यह वास्तव में किसी शब्द में लाम और गाफ का क्रम लिखना होता है जिससे निश्चित रूप से कोई न कोई रूकन फिर अरकान से बहर बनता है ।
जैसे - हो गई है पीर पर्वत सी पिघलनी चाहिए इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए हो गई है/ पीर पर्वत/ सी पिघलनी / चाहिए 2122/ 2122/ 2122/ 212 फाइलातुल/ फाइलातुन/ फाइलातुन/ फाइलुन
मात्रा गिराना-
गज़ल के बहर के अनुसार किसी गाफ मतलब दीर्घ मात्रा को घटाकर लाम मतलब लघु जैसे बोला जाये, जो लिखा दीर्घ है किन्तु उसका उच्चारण लघु जैसा हो तो तक्ती करते समय उस दीर्घ को लघु लिखा जाता है माना जाता है ।
जैसे- कोई जिसका वज़्न फैलुन 22 है को फअल वज़्न से कुई 12 या फालु वज़्न से कोइ 21 पढ़ा जा सकता है ।
जैसे -
इस हिमालय/ से कोई गं/गा निकलनी/ चाहिए
2122/ 2122/ 2122/ 212
फाइलातुल/ फाइलातुन/ फाइलातुन/ फाइलुन
यहाँ दूसरे रूकन में 'से काेई गं' को 'से कुई गं' पढ़े जाने पर इसका रूकन 2122 हुआ ।
-रमेश चौहान