सार छंद-
प्रस्तुत भजन सार छंद में लिखि गई है । भारतीय संस्कृति और साहित्य का विशेष महत्व है । हिन्दी साहित्य स्वर्ण युग के कवि तुलसीदास, सूरदास, कबीर दास जैसे संतों ने अपनी रचनायें छंदों में ही लिखी हैं । इसके बाद भी छंदों का प्रचलन बना हुआ है । ‘सार छंद में चार पद होते हैं, प्रत्येक पद में 16,12 पर यति होता है । दो-दो पदों के अंत में समतुकांत होता है ।‘ सार छंद गीत और भजन लिखने के लिये सर्वाधिक प्रयोग में लाई जाती है ।
भजन का भवार्थ-
प्रस्तुत भजन में भगवान कृष्ण के मनोहर लालित्यमयी बालचरित्र का वर्णन सहज सुलभ और सरल भाषा में व्यक्त किया गया है । भगवान कृष्ण अपने बाल्यकाल में कैसे अपने भक्त गोपियों के साथ वात्सल्य भाव प्रदर्शित करते हुये उनके घर माखन खाते तो ओ भी चोरी-चोरी । भगवान के बालचरित्र की चर्चा हो और माखन चोरी की बात न हो, ऐसा कहॉं संभव है । प्रस्तुत भजन में भगवान के इन्हीं माखन चोरी लीला का चित्रात्मक अभिव्यक्ति प्रस्तुत किया गया है ।

माखन चोरी की कथा-
मूलरूप से श्रीमद्भागवत के दशम् स्कन्ध में भगवान के बाल चरित्र के साथ माखन चोरी का मनोहारी चित्रण किया गया है । इसे ही आधार मानकर हिन्दी साहित्य आदिकालिन कवियों से लेकर हम जैसे आज के कवि उसी भाव को अपने शब्दों में अपनी भावना को व्यक्त करते आ रहे हैं ।
मूल कथा के अनुसार भगवान कृष्ण अपने बाल्यकाल में अपने ग्वाल सखाओं के साथ खेल-खेल में गोकुल के ग्वालिनीयों के यहाँ माखन चुराने जाये करते थे । उनके सखा मानव पिरामिड बना कर कृष्ण को अपने कंधों में उठा लिया करते थे । भगवान कृष्ण ऊपर टांगे गये शिके (रस्सी में बंधे हुये मटके, जिसमें माखन रखा जाता था) को उतार लेते थे और स्वयं माखन तो खाते ही थे साथ-साथ ही हँसी-ठिठोली के साथ अपने बाल सखाओं को भी माखन खिलाते थे ।
अचरज की बात है इस माखन चोरी से वे ग्वालिनीयें आत्मीय रूप से बहुत आनंदीत होती थी जिनके यहॉं माखन चोरी होता था, वे ग्वालिनी बाहर से कृष्ण को डांटती थी किन्तु मन ही मन अपने भाग्य को सराहती थी कि कृष्ण उनके हाथों से बनाये माखन को खा रहे हैं ।
इससे अधिक अचरज की बात यह थी कि जिस ग्वालिन के घर माखन चोरी नहीं होता था, वह ग्वालिन बहुत दुखी हो जाती थी, उनके मन में एक हिनभावना आ जाता था कि उसकी सखी के यहॉं माखन चोरी हुआ किन्तु स्वयं उनके यहॉं नही हुआ और वे मन ही भगवान कृष्ण से प्रार्थना करने लगती कि हे माखन चोर, मेरे माखन का भी भोग लगाइये, मेरे घर को भी पावन कीजिये ।
इन्हीं भावनाओं को मैनें अपने इस काव्य भजन में पिरोने का प्रयास किया है-
संग लिये प्रभु ग्वाल बाल को, करते माखन चोरी । मेरो घर कब आयेंगे वो, राह तके सब छोरी । संग लिये प्रभु ग्वाल बाल को, करते माखन चोरी । मेरो घर कब आयेंगे वो, राह तके सब छोरी ।
सुना-सुना घर वो जब देखे, पहुँचे होले-होले । शिका तले सब ग्वाले ठाँड़े, पहुँचे खिड़की खोले ।। ग्वाले कांधे लिये कृष्ण को, कृष्णा पकड़े डोरी । संग लिये प्रभु ग्वाल बाल को, करते माखन चोरी ।
माखन मटका हाथ लिये प्रभु, बिहसी माखन खाये । कछुक कौर ग्वालों पर डारे, ग्वालों को ललचाये ।। माखन मटका धरे धरा पर, लूटत सब बरजोरी । संग लिये प्रभु ग्वाल बाल को, करते माखन चोरी ।
ग्वालन छुप-छुप मुदित निहारे, कृष्ण करे जब लीला । अंतस बिहसी डांट दिखावे, गारी देत चुटीला ।। कृष्ण संग गोपी ग्वालन, करते जोरा-जोरी । संग लिये प्रभु ग्वाल बाल को, करते माखन चोरी ।
-रमेश चौहान
One reply on “भजन-‘संग लिये प्रभु ग्वाल बाल को, करते माखन चोरी’”
सुंदर प्रस्तुति ।
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