दोहा
प्रथम पूज्य गणराज को, प्रथम नमन कर जोर ।
जिनकी करूणामय दया, करते हमें सजोर ।।
श्रद्धा और विश्वास से, पूजे जो गणराज ।
करते वे निर्विघ्न सब, पूरन अपने काज ।।
चौपाई
हे गौरा गौरी के लाला । हे लंबोदर दीन दयाला
सबसे पहले तेरा सुमरन । करते है हम वंदन पूजन
हे प्रभु प्रतिभा विद्या दाता । भक्तों के तुम भाग्य विधाता
वेद पुराण सभी गुण गाये। तेरी महिमा भक्त सुनाये
सकल सृष्टि का करने फेरा । मात-पिता को करके डेरा
प्रदक्षिणा प्रभुवर आप किये । सकल सृष्टि को नव ज्ञान दिये
गगन पिता सम माता धरती । दिये ज्ञान प्रभु तुम इस जगती
जनक शंभु शिव प्रसन्न हो अति । बना दिये तुम को गणाधिपति
तबसे पहले पूजे जाते । हर पूजन में पहले आते
गौरी गणेश साथ विरोजे । शुभता में अरू शुभता साजे
तुमको सुमरन कर भक्त सभी । करते कारज शुरूआत जभी
सकल काम निर्विघ्न होत है । दया सिंधु की दया जोत है
वक्रतुण्ड़ हे देव गजानन । हे लंबोदर हे जग पावन
मूषक वाहन बैठ गजानन । भोग लहै मोदक मन भावन
रूप मनोहर सबको भाये । भादो महिना भवन बिठाये
जन्मोत्सव तब भक्त मनाते । जयकारा कर महिमा गाते
माँ की ममता तोहे भावे । तोहे मोदक भोग रिझावे
बाल रूप बच्चों को भाये । मंगल मूरत हृदय बिठाये
एकदन्त प्रभु कृपा कीजिये । सद्विचार सद्बुद्धि दीजिये
विकटमेव प्रभु विघ्न मिटाओ । बिगड़े सारे काज बनाओ
गौरी नंदन शिव सुत प्यारे । तुहरी महिमा जग में न्यारे
ज्ञान बुद्धि के अधिपति तुम हो । मति मति में पावन मति तुम हो
ज्ञान बुद्धि के तुम हो दाता । अज्ञानी के भाग्य विधाता
सकल वेद के लेखनकर्ता । अज्ञान तमस के तुम हर्ता
धुम्रवर्ण तेरो तन सोहे । तेरो गज मुख जग को मोहे
रिद्धी-सिद्धी के आपहिं स्वामी । है शुभ-लाभ तनय अनुगामी
रिद्धी-सिद्धी अरू शुभता पाते । कृपा तुम्हारी भक्त हर्षाते
विघ्नों के प्रभु तुम हो हर्ता । पाप कर्म के तुम संहर्ता
प्रभुवर अपनी पुनित भक्ति दें । विमल गंग सम बुद्धि शक्ति दें
मातु-पिता की सेवा कर लें । उनके सब दुख अपने सिर लें
देश भक्ति में कमतर न रहें । मातृभूमि हित हम पीर सहें
मातृभूमि के चरणकमल पर । करूँ कर्म निज प्राण हाथ धर
शक्ति दीजिये इतनी प्रभुवर । कृपा कीजिये गणपित हम पर
मानवता पथ हम सभी चलें । प्राणीमात्र से हम गले मिलें
सभी पापियों के पाप हरो। ज्ञान पुँज उनके भाल भरो
दोषी पापी नहीं पाप है । लोभ मोह का विकट श्राप है
लोभ मोह का प्रभु नाश करें । सकल सुमति प्रभु हृदय भरें
हे प्रभुवर शुभ मंगलदाता । तुहरि कृपा अमोघ विख्याता
नारद शारद महिमा गाये । गवाँर ‘रमेश’ क्या बतलाये
भूल-चूक प्रभु आप विसारें । हम सबके प्रभु भाग सवारें
दोहा
भक्त शरण जब जब गहे, सकल क्लेश मिट जात ।
किये गजानन जब कृपा, सब संभव हो जात ।।
करे मनोरथ पूर्ण सब, मंगल मूर्ति गणेश ।
चरण षरण तन मन धरे, सब विधि दीन ‘रमेश’ ।।
-रमेश चौहान
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