सत्य क्या है ?
मानव जीवन में सच्चाई क्या है? हमारा शरीर या हमारी आत्मा। हम जो दृश्य अपनी आँखों से देखते हैं, जो आवाज़ हम अपने कानों से सुनते हैं, जीभ में जो स्वाद होता है सच्चाई क्या है ? इनमें से कोई एक या सभी से अलग है जिसे सत्य कहा जा सकता है।
आत्मा और देह
इस पर विचार करते हुए, हम पाते हैं कि शरीर का अस्तित्व आत्मा के बिना नहीं है और आत्मा का अस्तित्व शरीर के बिना अनुभव नहीं किया जाता है। शरीर और आत्मा एक दूसरे के पूरक हैं। हालांकि, यह कहा जा सकता है कि शरीर और आत्मा दोनों ही हैं सच। इसकी सत्यता फूल में खुशबू, फल में स्वाद के समान है। जैसे फूल के बिना खुशबू और खुशबू के बिना फूल , स्वाद के बिना फल और फल के बिना स्वाद की कल्पना नहीं की जा सकती, उसी तरह से शरीर के बिना आत्मा और आत्मा के बिना शरीर की कल्पना पूर्ण नहीं है। आत्मा के बिना शरीर को एक शव कहा जाता है।
श्रीमद्भागवत गीता का कथन
हिंदू धर्मग्रंथ श्रीमद भगवद गीता के अनुसार, आत्मा कभी पैदा नहीं होती है और न ही मरती है, यह शाश्वत अमर है। जन्म शरीर का होता है और शरीर में ही बचपन, जवानी और बुढ़ापे के विभिन्न चरण होते हैं। इसलिए, मृत्यु भी केवल शरीर की है, इसका मतलब है कि शरीर और आत्मा दोनों सत्य होने के बावजूद, केवल आत्मा शाश्वत सत्य है।
सत्य की सत्यता
सत्य का अर्थ है शाश्वत जिसमें न लिंग है, न जातिगत भेदभाव है, न ही और कोई भेद। जो भी हो, जहां भी हो, जैसा भी हो, हर परिस्थिति में जो शाश्वत सच है, वही सत्य है ।
सत्य अव्यक्त किन्तु अनुभवगम्य है
यदि एक हजार लोग एक दृश्य देख रहे हैं और उनसे बाद में पूछा जाता है, तो प्रत्येक व्यक्ति के देखने के तरीके में अंतर दिखाई देगा। अर्थात् उन सभी लोगों ने सत्य को देखा है लेकिन सत्य को व्यक्त करने में सक्षम नहीं हैं जैसा कि वह है, अर्थात सत्य। इस प्रकार आँखों से देखा गया भी सत्य नहीं हो सकता । इसी प्रकार सुना भी सत्य नहीं होता । सत्य को तो केवल अनुभव किया जा सकता है । अनुभवगम्य सत्य ही ईश्वर है ।
सत्य ही ईश्वर है
सत्य ही सत्य है। ईश्वर ही ईश्वर है । ईश्वर ही सत्य है । सत्य ही ईश्वर है । जिस प्रकार सत्य अनुभवगम्य है, उसी प्रकार ईश्वर अनुभवगम्य किंतु अव्यक्त है ।
One reply on “अनुभवगम्य सत्य ही ईश्वर है”
[…] अनुभवगम्य सत्य ही ईश्वर है […]
LikeLike