घुला हुआ है वायु में, मीठा-सा विष गंध
जहां रात-दिन धू-धू जलते, राजनीति के चूल्हे बाराती को ढूंढ रहे हैं, घूम-घूम कर दूल्हे
बाँह पसारे स्वार्थ के करने को अनुबंध
भेड़-बकरे करते जिनके, माथ झुका कर पहुँनाई बोटी - बोटी करने वह तो सुना रहा शहनाई
मिथ्या- मिथ्या प्रेम से बांध रखे इक बंध
हिम सम उनके सारे वादे हाथ रखे सब पानी चेरी, चेरी ही रह जाती गढ़कर राजा -रानी
हाथ जले हैं होम से फँसे हुये हम धंध।
-रमेश चौहान